राजदीप सरदेसाई के मित्र है उद्धव बाल ठाकरे। एक अंतर्राष्ट्रीय बुद्धिजीविता की
मत्स्य-मकर मित्रता का जलीय समीकरण है। अगर जल साफ़ है तो अंदर की चीज़ें भी साफ़ साफ़
दिखाइै देती हैं। मछली भी और मकर भी। पर पत्रकारिता की बुद्धिजीविता मछली नहीं होती। होती भी
है तो सतर्क शार्क होती है। मकर की दुर्गति आप हम समझ सकते हैं।
यही खुलासा होता है राजदीप सरदेसाई के एक सार्वजनिक पत्र से जो लिखा तो उन्होंने
अपने पारिवारिक मित्र राजनीतिकार को अपने पत्र समूह के जरिए भेजा है।
यह सारा पत्र व्यंजना-लेखन का अप्रतिम उदाहरण है जो शायद सूरदास की विप्रलंभात्मक भ्रमरगीत की परंपरा से होकर आया है। वे पत्र का प्रारंभ ही विप्रलंभ से करते हुए लिखते हैं -
‘‘ प्रिय उद्धव जी , सबसे पहले आपको बहुत बहुत बधाई क िआपने पिछले पखवाड़े में अपने चचेरे भाई राज से सुखि़यां एक से छीन ली। दृलगता हे जा ‘आग’ बाल ठाकरे के भीतर जलती है वह बेटे में भी मौज्ूाद है।कृअंततः शिवसेना के नेता के तौर पर सफलता का मंत्र खेज लिया गया है कि : उक शत्रु योज लो , उसे डराओ-धमकाओ ,कुछ हिंसात्मक कार्रवाईयों को अंजाम दो और फिर यूरेका।’’
साफ जाहिर है कि अपने प्रिय मित्र सरदेसाई को कितने प्रिय हैं। उनका उद्देश्य भी मित्र को खुश करना कदापि नहीं है। वे प्रियत्व के चेहरे पर चढ़े हुए एकएक मुखोटे का बड़ी ही निर्ममता से उतारते चले जाते हैं। वे तथ्यों को भी प्रस्तुत करते हैं तो उसमें विश्लेषण का भाव अंतर्निहित होता है। जो शायद हर बुद्धिजीवी की खासियत में शामिल होता है। रारजदीप ने तथ्य पेश किया है - आई पी एल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को शामिल करने की इच्छा जताने पर आपने शाहरुख खान को देशद्रोही कहा। पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान और दाऊद इब्राहिम के करीबी रिश्तेदार जावेद मियांदाद को आपके पिता द्वारा अपने घर में आमंत्रित करने का मसला जगजाहिर है। ’’
सरदेसाई ने तथ्यों के आइने में समस्या मूलक राजनैतिक ऊधमों की रूाल्यक्रिया की है। वे मुस्लिम शाहरुख के पाकिस्तानी खिलाड़ियों के मामले को एक व्यापक फलक पर देखते है और ऊध मवादी मानसिकता की ऐतिहासिक चीरफाड़ करते हैं। सरदेसाई ने लिखा है कि आश्चर्य हुआ कि आपने अंबानी और तेंदुलकर को भी नहीं बख्शा। लता मंगेशकर के साथ सचिन तेंदुलकर महाराष्ट्र के सबसे सम्मानित चेहरे हैं। आप भी सहमत होगे कि सचिन महाराष्ट्रीयन अस्मिता के ऐसे प्रतीक हैं कि दूकानो और सड़कों का मराठी नामकरण भी वैसा गोरव नहीं जगा सकता। पिछले चार दसकों में शिवसेना ने महाराष्ट्र की कई प्रतिष्ठित साहित्यिक शख्सियतों व पत्रकारिता संस्थानो ंको निशाना बनाया है।
उन्होंने बिना राजनैतिक दोगलापन जैसे शब्दों का प्रयोग किए ही तथ्यों की सूई को उसी दिशा में मोड़ दिया है। एक मित्र को लिखे गए पत्र में शब्द शालीन तो होने ही चाहिए। पत्र एक स्वदेशी मित्र को लिखा जा रहा है किसी दुश्मन को नहीं। संदर्भ भी स्वदेशी शाहरुख है। भले ही राजनैतिक रोटी सेंकने की दृष्टि से मित्र परिवार (खान) पर ठाकरे परिवार वितंडा मचा रहा हो। बहरहाल , वे लिखते हैं कि विधानसभा चुनावों के ठीक पहले आपने एक इंटरव्यू में मुझसे कहा था कि आप शिवसेना की हिंसा की परंपरा को मिटाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। ..आपके द्वारा आयोजित की गई किसान रैलियों से और किसानों की आत्महत्याओं का मामला उठाने से मैं बहुत प्रभावित हुआ था। मैंने सोचा था कि उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के राजनैतिक परिदृश्य को बदलने के प्रति वाकई बहुत गंभीर हैं। लेकिन मैं निश्चित रूप से गलत था। किसान अब भी आत्म हत्या कर रहे हैं।’’
अपने कथन में सरदेसाई आश्चर्यजनक रूप से तथ्यात्मक विश्लेषण और प्रस्तुतिकरण में अद्भुत संप्रेषण कौशल का अनुप्रयोग करते दिखाई देते हैं। उनका डायग्नोसिस बड़ा तर्कसंगत ओर आत्मविश्वास से परिपूर्ण है। लगभग मनोविश्लेषक की शैली में वे लिखते हैं कि एक तरह से मैं आपकी हताशा के कारणों को समझ सकता हूं। विधानसभा चुनावों के नतीजे बताते हैं कि संयुक्त शिवसेना सत्ताधारी गठबंधन के सामने कड़ी चुनौती पेश कर सकती थी। इस पराजय से ष्ज्ञायद आपको लगा कि आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता यही है कि संकीर्णता की राजनीति में अपने चचेरे भाई को परास्त किया जाए। इसमें कोई शक नहीं है कि इस रणनीति से आप सुखिऱ्यां बटोरने में सफल रहे, लेकिन दुर्भाग्य से टीवी रेट्रिग के प्वाइंट से वोट या सद्भावना नहीं मिलती। महाराष्ट्र की राजनीति में क्षेत्रीय ताकत के लिए जगह है लेकिन वह ताकत रचनात्मक और संयुक्त पहचान पर आधारित होनी चाहिए। ....यह त्रासदी है कि शिवसेना ने कभी भी भविष्य के लिए सामाजिक या आर्थिक एजेंडा पेश नहीं किया। ’’
किन्तु राजदीप केवल आलोचना ही नहीं करते समाधान और दिशाबोध का इंगन भी करते हैं। वे सुझााव देते हैं कि ‘‘शिवसेना ऐसी प्रशिक्षण योजनाएं शुरू क्यों नहीं करती जिससे महाराष्ट्रीयन युवक प्रतिस्पद्र्धी रोजगार मार्केट की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हा सके। किन्तु ऐसा करते हुए एक अनुभवी बुद्धिजीवी की तरह वे अवसर परस्तों के चरित्र का भी ध्यान रखते हैं और आशंका व्यक्त करते हैं कि शायद मैंनं कुछ अधिक ही अपेक्षा (उद्धव से ) कर ली है। वर्षों से दूसरों को भयभीत करने वाले चीते कभी भी अपनी धारियां नहीं बदलते।
यह सूत्रवाक्य आज के प्रबंधन से जुड़े विश्लेष्कों का ब्रह्मास्त्र है। हम देख ही रहे हैं कि ठीक समय पर उसका प्रयोग करना सरदेसाई भी जानते हंै।
यही कारण है कि पत्र का अंत राजदीप ने अद्भुत करिश्माई तरीके से मर्म पर प्रहार करते हुए किया है। पत्र का अंत करते हुए वे लिखते हैं -‘‘ पुनश्च: आपके सौम्य बेटे आदित्य जो संेट जेवियर कालेज में अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई कर रहा है ,ने मुझे अपनी कविताओं का एक संकलन भेजा था। मै ंउसकी लेखन शेैली से बहुत प्रभावित हुआ। उम्मीद करे कि टी कंपनी ( टी फार ठाकरे) की अगली पीढ़ी केा अंततः ऐहसास होगा कि शेरगुल ही जिन्दगी नहींे है ,उसकी सार्थकता इससे भी ज्यादा है।
अब इससे ज्यादा खुलकर एक मित्र अपने भटके हुए मित्र को और क्या गाली दे सकता है या रास्ता बता सकता है। हालांकि इस विषय पर अनेक फिल्में बन चुकी हैं कि भ्रष्ट पिता की संतानें पाप के साम्राज्य से बाहर आने के लिए सतत प्रयास करती है और सफल भी होती हैं। भूमिगत अपराधियों के पुत्रों को विदेशों से पढ़कर लौटते भ बताया गया है किन्तु यह जीवंत है कि उत्तरभारतीयों को पीटनेवाले आतंकप्रिय पिता के पुत्र की कविताएं सरदेसाई जैसे निरंतर जागरूक बुद्धिजीवी के लिए आशा का खजाना है। इस अद्भुत शैली में रचे गए विप्रलंभ के लिए हम केवल बौद्धिक बधाई ही पे्रषित कर सकते हैं और चाह सकते हैं कि विवेकवान लेखनियां निरंतर जागती रहें। आमीन।
15.02.10 ,सोमवार।
यही कारण है कि पत्र का अंत राजदीप ने अद्भुत करिश्माई तरीके से मर्म पर प्रहार करते हुए किया है। पत्र का अंत करते हुए वे लिखते हैं -‘‘ पुनश्च: आपके सौम्य बेटे आदित्य जो संेट जेवियर कालेज में अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई कर रहा है ,ने मुझे अपनी कविताओं का एक संकलन भेजा था। मै ंउसकी लेखन शेैली से बहुत प्रभावित हुआ। उम्मीद करे कि टी कंपनी ( टी फार ठाकरे) की अगली पीढ़ी केा अंततः ऐहसास होगा कि शेरगुल ही जिन्दगी नहींे है ,उसकी सार्थकता इससे भी ज्यादा है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
sundar post..
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